top of page

राग अलंकार विधियाँ

हमने स्वर अलंकार के बारे में पहले ही पढ़ा. राग अलंकार का अर्थ है राग में लगने वाले सुरों को विभिन्न तरीके से परिवर्तित करके इस प्रकार गाना कि सुनने में सुर का प्रभाव आनंददायी लगे. एक प्रकार से राग अलंकार सुर प्रस्तुति की एक शैली है जो गायन को विशेष बनाती है. आईये राग अलंकार की कुछ प्रमुख विधियों के बारे में जाने. 

कर्ण स्वर 
किसी स्वर को लगाने से ठीक पहले, उस स्वर से ऊपर या नीचे के जिस स्वर को हलके से छूते हुए मुख्य स्वर पर स्थिर होते हैं उसे कर्ण स्वर कहते हैं. उदाहरण के लिए, अगर हमें 'प' स्वर लगाना है तो 'म' स्वर का हल्का सा उच्चारित करके जल्दी से 'प' पर चले जाएँ. यहाँ 'म'  कर्ण स्वर है. इसी प्रकार से, अगर 'प' स्वर लगाने के पहले अगर 'ध' को हलके से छूते हुए 'प' पर आयें तो 'ध' कर्ण स्वर हो जायेगा. कर्ण स्वर की विधि का प्रयोग करने से राग में मुख्य स्वर के आसपास के स्वर लगाते रखते है और उससे राग के गायन में एक अलग ही प्रभाव उत्पन्न होता है. असल में, कर्ण स्वर के मुख्य स्वर से ऊपर या नीचे के स्वर होने से बिलकुल अलग अलग प्रकार का प्रभाव उत्पन्न होता है. इसी विशिष्ट प्रभाव की वजह से राग का रस और निखर कर प्रस्तुत होता है. कर्ण स्वर की वजह से स्वर के भाव में होने वाले परिवर्तन को ध्यान में रखते हुए विभिन्न रागों में अलग अलग कर्ण स्वर का प्रयोग किया जाता है. कर्ण स्वर का गलत प्रयोग करने से राग का भाव पूरा बदल सकता है. 

 



 

 

 

 

 

 

आन्दोलन 
अगर किसी स्वर को गाते समय धीरे से, बिना किसी विराम के, स्वर की निर्धारित स्थिति से थोड़ा ऊंचा या नीचा ले जाया जाये और फिर वापस स्वर की निर्धारित स्थिति पर ले आया जाये तो इस विधि को आन्दोलन कहते है. आन्दोलन किसी किसी राग विशेष में प्रयोग किया जाता है, हर राग में नहीं और इसको राग के नियमानुसार चुने हुए स्वरों पर ही प्रयोग किया जा सकता है, ऐसा नहीं कि किसी भी राग पर, किसी भी स्वर पर जैसा मन किया वैसा प्रयोग कर लिया जाये. आन्दोलन का प्रयोग करते समय, स्वर को कितना दूर तक ऊपर या नीचे खींचना है इसका कुछ निर्धारित नियम नहीं है लेकिन सिर्फ इतना ध्यान रखा जाता है कि बस थोड़ा सा ही स्वर बदलाव हो, इतना नहीं कि स्वर बदल कर अगले या पिछले स्वर तक पहुँच जाये.

 


 

 

 

 

 

 

मींड 
सामान्यतः गाते समय हम एक स्वर से दूसरे स्वर में जाते हैं तो ये स्वर का बदलाव एक दम से होता है, दोनों स्वरों के स्पष्ट पहचाने जा सकने वाले अलग अलग एक निर्धारित रूप लगते है. जैसे मान लें की हमे किसी राग में ग और प गाने हैं तो हम ग स्वर लगा कर तुरंत प स्वर पर जायेंगे. अब हम अगर बजाये ग से प पर सीधे जाने के, अपने स्वर को धीरे धीरे ग से थोड़ा थोड़ा ऊंचा करते जाएँ तो पहले ग से म के बीच की श्रुतियां लगेंगी, बिना रुके, स्वर को लगातार बदलते हुए थोड़ा और ऊंचा करेंगे तो म पर स्वर पहुंचेगा, और स्वर को बदल के ऊंचा करें तो तीव्र म लगाने लगेगा, फिर तीव्र म और प के बीच की श्रुतियां और आखिरकार स्वर बदल कर प तक पहुंचेगा. इस विधि को जिसमे एक स्वर को लगातार बदलते हुए दूसरे स्वर तक ले कर जातें हैं (बिना ध्वनि के प्रवाह को तोड़े) मींड कहते हैं.  चूंकि मींड गाते समय दो स्वरों के बीच के सभी उचित स्वर लगाने चाहिए, मींड के लिए गाने की गति और सुरों की पकड़ बिलकुल संयमित होनी चाहिए. दो स्वरों के बीच के स्वरों और श्रुतियों पर अलग अलग रागों में अलग तरह से जोर दिया जाता है. 

© 2017 BY SLG MUSICIAN (LALIT GERA JHAJJAR ) HARYANA

bottom of page