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अलंकार अभ्यास

भाग १

सुर अभ्यास के प्रथम चरण में हम अपने मूल सुर की स्थापना और सुरों को सही रूप से लगाने का अभ्यास करेंगे. इस चरण के अभ्यास के सारी जानकारी विस्तृत रूप में बताएँगे. 

मूल सुर की स्थापना - मूल सुर का मतलब यहाँ हमारे सबसे प्राकृतिक और सहज रूप से लगाने वाले 'स' सुर से है. ये 'स' आमतौर पे हमें मंद्र या मध्य सप्तक से उठाना होता है. लेकिन अगर किसी का गला प्राकृतिक रूप से बहुत भारी हो तो खर्ज सप्तक में भी मूल सुर लिया जा सकता है. अब यहाँ थोड़ा पेचीदा और भ्रम पैदा करने वाली बात ये है की ये 'स' सुर हारमोनियम जैसे वाद्य यन्त्र का कोई और सुर भी हो सकता है. मूल सुर की स्थापना का उद्देश्य है वाद्य यन्त्र के किसी सप्तक में कोई ऐसा सुर ढूँढना जो आपके लिए सबसे सहज रूप में 'स' सुर लगे. इसका ये मतलब हुआ कि ऐसा जरूरी नहीं है कि जो वाद्य यन्त्र में 'स' हो आप उसी को 'स' मान कर सुर लगायें. 
अब इसका ये भी मतलब हुआ की अलग अलग लोगों का एक ही सप्तक का मूल स्वर 'स', वाद्य यन्त्र के अलग अलग सुरों पे जा के बैठेगा. सामान्य तौर पर हारमोनियम या CASIO के जिस key पे आपका मूल स्वर 'स' जाके बैठता हो उसे आप याद कर ले और हमेशा उसे ही अभ्यास करने के लिए इस्तेमाल करें.  

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 



ज्यादातर, पुरुषों का हारमोनियम का पहली काली वाली key मूल स्वर 'स' होता है और महिलाओं का चौथी काली वाली key मूल स्वर 'स' होता है. पहली काली key को बोलचाल में 'काली एक' कह के बुलाते है और चौथी वाली को 'काली चार'. ज्यादातर आप संगीत शिक्षकों को ऐसा कहते सुनेंगे "आप काली एक/चार से सुर उठाईये". इसका मतलब ये हुआ की आप हारमोनियम की पहली/चौथी वाली key से अपना 'स' शुरू करिए. 
अगर आप काली एक से शुरू कर रहे है तो उसके आगे आप बाकी के सुर लगायेंगे. अगर आप काली चार से शुरू कर रहे हैं तो उसके आगे आप बाकी के सुर लगायेंगे. तो काली एक से शुरू करने वाले का 'प' काली चार से शुरू करने वाले के लिए 'स' होगा. ये बात स्पष्ट करने के लिए मैंने  काली एक और काली चार दोनों मूल स्वरों के सप्तकों को हारमोनियम के keyboard पर दिखने की कोशिश की है.

                  


सुर की पकड़ के लिए अभ्यास
एक बार जब आपने अपना मूल स्वर 'स' पकड़ लिया है तो उसके हिसाब से बाकी के छः सुर ठीक तरीके से लगा पाने का अभ्यास सुर की पकड़ का अभ्यास है. शुरुआती अभ्यास के समय सारे सुरों को ठीक से समझ पाना और लगा पाना कठिन होता है. कई बार सुर लगते समय अंदाजा नहीं हो पाता की स्वर शुद्ध लग रहा है की कोमल या फिर तीव्र. इसलिए प्रारंभिक अभ्यास में सिर्फ तीन सुरों का अभ्यास करना चाहिए. ये सुर हैं:
स - प - 'स (अगले सप्तक का) 

आप सुर का अभ्यास (रियाज़) करने के लिए इन तीन स्वरों को लगातार क्रम से लगाने का प्रयास करते रहिये. 

सरगम का अभ्यास 
स - प - स वाले अभ्यास के थोड़े समय बाद (2-3 हफ्ते कम से कम) पूरी सरगम का अभ्यास शुरू करिए. स से लेकर अगले सप्तक के स तक पूरा सारे सुर लगाईये, आरोह और अवरोह दोनों में बारी बारी से. कोशिश करें कि एक एक सुर अलग अलग लगे और पूरा एक समान, बिना किसी कम्पन या लहराव के. एक सुर से दूसरे सुर में जाते समय पूरी सांस भर के जाएँ और कोई लहराव न पैदा करें आवाज़ में. शुरूआती दौर में अगर आपके पास हारमोनियम या CASIO keyboard है तो उसके साथ अभ्यास करें, आसानी रहती है.

सुर लगाते समय कोशिश करें कि जितनी सहज तरीके से सांस आपके सुर को संभल सकती है उतना ही खींचे. गले पर अपनी क्षमता से अधिक जोर कतई न लगाये. सुर आपको सांस की ताकत के बल पे लगाना है, गले के जोर से नहीं. दोनों में बहुत फरक है और यही फरक एक शास्त्रीय संगीत के गायक को साधारण गायक से अलग करता है, श्रेष्ठतर बनाता है. आपके अभ्यास के लिए हारमोनियम की मध्य सप्तक में पूरी सरगम की ऑडियो रिकॉर्डिंग नीचे दी जा रही है है. अगर आपके पास हारमोनियम नहीं है तो आप इस रिकॉर्डिंग तो चला कर साईट पर ही अभ्यास कर सकते हैं.

Full Sargam on Harmonium



अकार का अभ्यास 
गले को सधे तरीके से खोलने के लिए अकार के अभ्यास की सलाह दी जाती है. अकार का मतलब हुआ कि स रे ग म गाने कि बजाय अ अ अ अ कर के गला खोल के सुर लगाये. इससे गला पूरी तरह से साफ़ होता है हालाँकि स रे ग म की अपेक्षा अ अ अ अ करके सुर लगाने में ज्यादा परेशानी होती है. इसलिए शुरुआत में एक बार स रे ग म कर के सुर लगायें और फिर अ अ अ अ कर के सुर लगायें. धीरे धीरे जब सुर की पकड़ मजबूत हो जायेगी तो सिर्फ आकार में ही सुर लगाने में कोई दिक्कत नहीं आएगी. 

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© 2017 BY SLG MUSICIAN (LALIT GERA JHAJJAR ) HARYANA

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